जड़ता मानसिक, प्राणिक, भौतिक, अवचेतन होती है । भौतिक जड़ता मानसिक जड़ता उत्पन्न कर सकती है । प्राणिक जड़ता लगभग हमेशा भौतिक को निष्प्राण, मलिन तथा सुस्त बना देती है । - श्रीअरविन्द

श्रीअरविन्द सोसायटी

 

श्रीअरविन्द-सोसायटी का मुख्य उद्देश्य श्रीअरविन्द और श्रीमाँ की शिक्षाओं पर आधारित एक आध्यात्मिक समाज और एक नये विश्व के लिए कार्य करना है। इसकी स्थापना 1960 में उन व्यक्तियों एवं संस्थाओं को एक जुट करने के लिए हुई थी जो उक्त आदर्श से प्रेरित थे ताकि वे व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप में विश्व भर में उस आदर्श को प्रभावी ढंग से मूर्त रूप दे सकें।

यह प्रयास तीन दिशाओं में हो रहा है:-

  1. व्यक्ति का समन्वित विकास और उसकी पूर्णता।
  2. समाजिक रूपांतरण एवं सामूहिक जीवन का ऐसा विकास जिससे उसके अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति ऐसा स्थान पा सके जिसके लिये वह सर्वाधिक उपयुक्त है तथा इस प्रकार मानवता के विकास और पूर्णता के लिये अपना योगदान देने वाला शक्ति-स्रोत बन सके।
  3. समरसतापूर्ण और सुसंगठित वैविध्य के अंतर्गत ऐसी मानव एकता की उपलब्धि जिससे प्रत्येक राष्ट अपनी वास्तविक प्रतिभा के प्रति सचेतन बन सके तथा सम्पूर्ण मानवता के लिये अपना सर्वोतम योगदान दे सके।

यह देखते हुए कि सोसायटी का उद्देश्य सम्पूर्ण जीवन का रूपांतरण है उसके व्यापक कार्यक्रम के दायरे में सभी प्रकार की गतिविधियां आ जाती हैं। सोसायटी ‘संयुक्त राष्ट्र शिक्षा विज्ञान संस्कृति संगठन यूनेस्को’ की सदस्य है और भारत सरकार द्वारा उसे सामाजिक विज्ञान में शोध की संस्था के रूप में मान्यता मिली है।
श्री अरविन्द ने कहा है, ‘अगर हम सर्वत्र अलग-थलग रहें तो भी, निस्संदेह, कुछ न कुछ किया जायेगा। लेकिन अगर हम एक समूह के अंग के रूप में रहें तो अपेक्षतः सौ गुना अधिक किया जा सकेगा।’ सोसायटी का यही उद्देश्य है कि उन सब स्त्री-पुरूषों को एक सूत्र में पिरोया जाये जो एक नये विश्व के आगमन के लिये समर्पित है, वे चाहे किसी भी राष्ट्र, संप्रदाय या धर्म के क्यों न हों।

श्रीअरविन्द-सोसायटी के सदस्य और केंद्र:-

भारत और विश्व भर में श्रीअरविन्द-सोसायटी के अनेक सदस्य, केंद्र और शाखाएं हैं। सदस्यता की कई श्रेणियां हैं, आप एक वर्ष के लिए भी सदस्य बन सकते हैं या फिर कई वर्षों के लिए। संस्थाएं भी इसका सदस्य बन सकती हैं।

श्रीअरविन्द-सोसायटी के केंद्र और शाखाएं मुख्यतः साधना और भगवान की सेवा के केंद्र होंगे। सेवा के विविध रूप हैं। कुछ केंद्रों के निजी फार्म, विद्यालय, कुटीर-उद्योग हैं जिन्हें वे आदर्श संस्थाएं बनाने के प्रयास में हैं। अधिकतर केंद्र ध्यान और स्वाध्याय गोष्ठियां करते हैं। एक नयी विश्व-व्यवस्था, मानव एकता और विश्व संस्कृति पर नियमित गोष्ठियां, संभाएं, प्रदर्शनियां और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। स्वाध्याय-शिविर, युवा-शिविर और प्रशिक्षण-सत्र भी आयोजित किये जाते हैं।